मौनपालन के क्षेत्र में कदम बढ़ा रहे टिहरी के देवलसारी क्षेत्र के युवा, स्वरोजगार से अन्य को भी जोड़ा
जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध पर्यटक स्थल देवलसारी क्षेत्र के ग्रामीण अब मौनपालन (मधुमक्खी पालन) के क्षेत्र में कदम बढ़ा रहे है। पहले ग्रामीण पारंपरिक तरीके से मौनपालन करते थे, अब आधुनिक तरीके से कार्य कर रहे हैं। इसमें देवलसारी पर्यावरण संरक्षण व विकास समिति इन युवाओं की मदद कर रही है।
देवलसारी अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र जिला मुख्यालय टिहरी से करीब 85 किलोमीटर दूर चंबा-मसूरी मार्ग पर है। जो जौनपुर क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह स्थान उत्तरकाशी जिले की सीमा से लगा है। वाहन सुविधा के बाद यहां पहुंचने के लिए करीब ढाई किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा।देवलसारी क्षेत्र के ग्रामीण वर्षों से घरों में पारंपरिक तरीके से शहद का उत्पादन करते थे। लेकिन यहां पर मौनपालन की संभावनाओं को देखते हुए अब ग्रामीण इसे व्यावसायिक तौर पर उत्पादन कर रहे हैं।
इसके लिए ग्रामीणों को देवलसारी पर्यावरण संरक्षण एवं विकास समिति से जुड़े विशेषज्ञों के माध्यम से निश्शुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यहां के युवा मौनपालन की विधि को समझकर इसके उत्पादन को बढ़ा रहे हैं।मौनपालन के लिए समिति सात हजार लागत के डिब्बे युवाओं को तीन- तीन हजार रुपये में दे रही है। अब तक करीब 35 डिब्बे जिन्हें मौनवंश भी कहा जाता है युवाओं को दिए जा चुके हैं। युवाओं का रुझान भी इस ओर बढ़ रहा है।
करीब आधा दर्जन गांवों में युवाओं ने इसकी शुरूआत कर दी है और जल्द ही अब यहां का शहद भी बाजारों में देखने को मिलेगा। इसके लिए समिति द्वारा मार्केटिंग की व्यवस्था में की है।समिति के निदेशक अरुण गौड़ का कहना है कि मौनपालन की संभावनाओं को देखते यहां के ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्हें मौनपालन के लिए लकड़ी के डिब्बे भी दिए गए हैं। अभी तक यह क्षेत्र विभिन्न प्रकार की तितलियों के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन अब यह मौनपालन के क्षेत्र में भी पहचान बनाने लगा है।
इन गांवों में शुरू हो रहा मौनपालन
- औंतण, तेवा, मोलधार, बुडकोट, पुजाल्डी और धौलधार।
बोले ग्रामीण
- बुड़कोट निवासी शांति प्रसाद गौड़ का कहना है कि अभी नकदी फसल उगाकर अपनी आर्थिकी संवार रहे थे, लेकिन अब मौनपालन को भी स्वरोजगार से जोड़ना शुरू कर दिया है। उम्मीद है कि आने वाले समय में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।
- मोलधार निवासी प्रकाश नौटियाल भी वर्तमान में नकदी फसल उगाते हैं। उनका कहना है कि वर्षों से वे सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं, लेकिन देवलसारी पर्यावरण संरक्षण एवं विकास समिति ने उन्हें मौनपालन के लिए प्रोत्साहित किया है।
- तेवा गांव निवासी जगमोहन सिंह का सेब का बागीचा है। यही उनकी आय का स्रोत हैं। उनका कहना है कि देवलसारी क्षेत्र में मौनपालन की काफी संभावनाएं हैं। इसके लिए समिति का भी सहयोग मिल रहा है।