यह कैसी पुलिसिंग? कोर्ट में जाकर टिक नहीं पाते पुलिस के आधे खुलासे, आरोपी आसानी से हो जाते हैं बरी
कोर्ट में पहुंचते ही पुलिस के 50 फीसदी के करीब मुकदमे टिक नहीं पाते। जिन धाराओं में पुलिस चार्जशीट दाखिल करती है, वह घटनाक्रम कई बार कोर्ट में साबित नहीं हो पाता और आरोपी बरी हो जाते हैं। तीन केस ऐसे हैं, जिनका खुलासा करते हुए पुलिस ने अपनी पीठ थपथपाई होगी।
लेकिन, इसके बाद कोर्ट में चार्जशीट पहुंची तो इस खुलासे के नुक्स निकल जाते हैं। सरकारी वकीलों पर इन केसों का इतना दबाव रहता है कि वे ठीक से एक-एक केस पर मेहनत नहीं कर पाते। ऐसे में बचाव पक्ष अधिकांश केसों में मुलजिमों को बचा लेता है। मजिस्ट्रीयल कोर्ट में जिन आधे केसों में सजा होती भी है, उनमें काफी संख्या में ऐसे केस होते हैं।
जिनमें न्यायिक अभिरक्षा में बिताई अवधि जितनी ही सजा सुनाई जाती है। इधर, संयुक्त निदेशक-विधि दून जीसी पंचोली ने बताया कि कोर्ट में फैसला सुनाते वक्त न्यायिक अधिकारी कई पहलुओं पर फोकस करते हैं। केसों की मजबूत पैरवी को सरकारी वकीलों की भी कमी है।
अदालतों में मामलों की संख्या घटने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही है। 2019 की शुरुआत में 11,600 केस लंबित थे। 2020 में 11774, 2021 में 12,633 और वर्ष 2022 की शुरुआत में 12884 केस सीआरपीसी के तहत विभिन्न न्यायालयों में लंबित रहे।
बीते कुछ वर्षों की स्थिति (भारतीय दंड संहिता के तहत)
साल फैसला आया सजा प्रतिशत
2019 918 केस 399 केस 43
2020 369 केस 184 केस 49.8
2021 641 केस 305 केस 47.5
2022 मई तक 373 केस 188 केस 49
केस-1: 15 मई 2013 को डालनवाला पुलिस ने वाहन चोरी में तीन आरोपी गिरफ्तार किए। तीनों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई। बीते दिनों कोर्ट ने तीनों को दोषमुक्त करार देकर बरी कर दिया।
केस-2: नौ मई 2011 को क्लेमनटाउन पुलिस ने फर्जी नंबर प्लेट लगी कार पकड़ी। इसमें दो लोग थे। पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट फाइल की। 21 जून को कोर्ट ने बरी किया।
केस-3: वर्ष 2013 में पटेलनगर पुलिस ने महिला से चेन लूट में दो आरोपी गिरफ्तार किए। दोनों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई। पुलिस के खुलासे की यह कहानी कोर्ट में टिक नहीं पाई। एसीजेएम कोर्ट ने कुछ वक्त पहले तीनों को बरी कर दिया।