गोपेश्वर में शुरू हुआ हिमालय बचाओ अभियान, प्राचीन वैतरणी कुंड को गंदगी से मुक्त रखने का संकल्प

गोपेश्वर में शुरू हुआ हिमालय बचाओ अभियान, प्राचीन वैतरणी कुंड को गंदगी से मुक्त रखने का संकल्प

प्राचीन वैतरणी कुंड के संरक्षण का संकल्प के साथ अमर उजाला के ‘हिमालय बचाओ अभियान-2022’ का गोपेश्वर में आगाज हुआ। हिमालय की चुनौतियों पर मंथन के दौरान यह बात उभर कर सामने आई कि हमें विकास और विनाश के बीच अंतर को समझना होगा। विशेषज्ञों ने कहा कि विकास और पर्यावरण में संतुलन जरूरी है। विकास की योजनाएं बनाते हुए हमें यह तय करना होगा कि हिमालय को कोई नुकसान न पहुंचे।

शनिवार को राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय गोपेश्वर के सभागार में हिमालय दिवस के उपलक्ष्य में अमर उजाला के अभियान की शुरुआत हुई। मुख्य अतिथि संयुक्त मजिस्ट्रेट/उपजिलाधिकारी (सदर) अभिनव शाह ने कहा कि पर्यावरण और विकास पर लंबे समय से बहस चल रही है लेकिन हमें दोनों संतुलन बनाने की जरूरत है।

विकास भी जरूरी है लेकिन पर्यावरण को नुकसान की शर्त पर नहीं। हमें आने वाली पीढ़ी के बारे में भी सोचना चाहिए। जो प्राकृतिक संसाधन हमें मिले हैं वे हमें अगली पीढ़ी के लिए भी सुरक्षित रखने हैं। इसके लिए जरूरी है कि अनियोजित विकास न हो। आज का विकास भविष्य को देखकर होना चाहिए। हिमालय की महत्ता सिर्फ पर्यावरण से जुड़ी नहीं है बल्कि यह जीवन यापन का भी बड़ा स्रोत है।
पेड़ ही नहीं पत्थर भी पर्यावरण का घटक: मुराली लाल

कार्यक्रम की अध्यक्षता सर्वोदय नेता और चिपको आंदोलन के अग्रणी नेता वयोवृद्ध मुराली लाल ने की। उन्होंने कहा कि पेड़ ही नहीं पत्थर भी पर्यावरण का घटक होता है। उन्होंने बताया कि किस तरह से छोटे-छोटे प्रयासों से पौधे लगाकर चिपको आंदोलन को वृहद रूप दिया गया था। उन्होंने कहा कि हमें पर्यावरण जैसे संवेदनशील विषय पर दिल से काम करना चाहिए। उन्होंने ने अपनी स्वरचित कविता ‘मनख्यालु पराण मेरू पीड़ाकु आभास, जीण चांदु मी भी मे न काटा’ सुनाकर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया। उन्होंने ‘पेड़ लगाओ पुण्य कमाओ’, ‘पेड़ लगाओ हिमालय बचाओ’, ‘पेड़ लगाओ धरती बचाओ’ जैसे भी नारे भी कार्यक्रम में लगवाए।

कार्यक्रम का संचालन प्रो. डीएस नेगी ने किया। कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. बीसी शाह, पर्यावरण विशेषज्ञ ओम प्रकाश भट्ट, तीलू रौतेली पुरस्कार विजेता पर्यावरणविद् मीना तिवारी, हरि प्रसाद ममगाईं, डा. वीपी देवली प्रो. भूगोल, डा. पूनम ताकुली, डा. भालचंद नेगी आदि मौजूद रहे।

बोले विशेषज्ञ
पहले 10 या 20 साल में कहीं कोई आपदा आती थी, लेकिन अब हम हर बरसात में कई आपदाओं को झेल रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण अनियोजित विकास है। हम संवेदनशील नहीं हुए तो और बड़े खतरे देखने पड़ेंगे। वैज्ञानिक, इंजीनियर व विशेषज्ञ परिस्थिति के अनुसार योजना बनाएं और उसी हिसाब से काम हो। हिमालय को नुकसान हमारे कारण ही हो रहा है। आधे देश की प्यास बुझाने वाली नदियां हिमालय से ही निकलती हैं। इनके संरक्षण की जरूरत है।
-ओम प्रकाश भट्ट, पर्यावरण संरक्षण संस्थान के ट्रस्टी

प्रगति के लिए संसाधनों की जरूरत पड़ती है। संसाधन बढ़ाने के साथ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि इसका हिमालय पर बुरा प्रभाव न पड़े। सालों पहले यहां सड़कों के निर्माण के लिए ब्लास्टिंग का इस्तेमाल होता था। इससे पूरा हिमालय क्षेत्र हिल गया था। इसी का परिणाम है कि हल्की सी बारिश में भी पहाड़ दरक रहे हैं। हमें हिमालय को समझने की जरूरत है। हम हिमालय के बारे में जितनी गहराई से जानेंगे उसके संरक्षण की दिशा में उतना ही बेहतर काम कर सकेंगे।
-हरि प्रसाद ममगाईं, सामाजिक कार्यकर्ता

हर व्यक्ति छोटी-छोटी कोशिशों से पर्यावरण और हिमालय के संरक्षण में योगदान दे तो यह बड़ा अभियान हो सकता है। इसके लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है बल्कि हम अपने जन्मदिन पर केक काटने के बजाय एक पौधा लगाएं और उसके पेड़ बनने तक उसकी देखभाल करें। इसके अलावा शादी, गृह प्रवेश जैसे हर शुभ कार्य में यदि हम पौधे लगाएं तो यह एक दिन बड़ा अभियान बन सकता है।
-मीना तिवारी, पर्यावरणविद् तीलू रौतेली पुरस्कार विजेता

हिमालय विश्व की सबसे जवान पर्वत श्रृंखला है। आज भी यह बनने के क्रम में है। इसलिए हम इसकी संवेदनशीलता को समझ सकते हैं। दरअसल आज हिमालय के बारे में पूरी जानकारी किसी के पास नहीं है। उसका जितना विराट स्वरूप है उसे जानना उतना ही कठिन भी है। हिमालय को लेकर जितने भी शोध हुए हैं उनमें जो देखा और समझा उसे ही आगे बढ़ाया, इसी से हम सबकी हिमालय को लेकर कुछ समझ विकसित हुई है। हिमालय को बचाने के लिए सबसे पहले उसे समझना जरूरी है।
-डा. अरिंवद भट्ट, भूगर्भ शास्त्री

छात्रों के सुझाव

हिमालय को लेकर सबको जागरूक होने की जरूरत है। चाहे कूड़े का निस्तारण हो या फिर प्लास्टिक का उपयोग सभी को लेकर संवेदनशील होने की जरूरत है। हिमालय रहेगा तभी मानव सभ्यता भी रहेगी।
-अंकिता रावत
पेड़ों के कटान पर रोक लगनी चाहिए। लगातार कम होते पेड़ों से तापमान बढ़ रहा है, जिसका असर हिमालय पर पड़ रहा है। हिमालय को बचाने के लिए अधिक से अधिक पौधे लगाने जरूरी हैं। साथ ही हिमालय क्षेत्र में मानव गतिविधियां भी सीमित करनी चाहिए।
-आनंद सिंह
प्रदूषण से ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव बढ़ रहा है, जिससे ग्लेश्यिर पिघल रहे हैं। यही स्थिति रही तो आने वाले समय में हिमालय खत्म हो जाएगा। इसे रोकने के लिए प्रदूषण को कम से कम करने की जरूरत है। साथ ही अधिक से अधिक पौधरोपण किया जाना चाहिए।
-अर्चना नेगी 
हिमालय पर मंडरा रहे खतरे के कई कारण हैं। विकास भी जरूरी है, लेकिन हिमालय पर पड़ने वाले प्रभाव को हम कितना कम कर सकते हैं उसपर काम करने की जरूरत है। साथ ही हर शुभ कार्य में पौधे लगाने चाहिए।
-कंचना
विशेषज्ञों ने शांत कीं छात्र-छात्राओं की जिज्ञासाएं
गोपेश्वर। कार्यक्रम के दौरान छात्र-छात्राओं ने हिमालय से जुड़े कई प्रश्नों को भी उठाया। विशेषज्ञों ने जवाब देकर उनकी जिज्ञासाओं को शांत किया। छात्र-छात्राओं की ओर से उच्च हिमालय क्षेत्र में स्थित बुग्यालों में प्लास्टिक पर प्रतिबंध, पानी निकासी की समस्या, गंगा में प्रदूषण जैसे मुद्दों पर सवाल पूछे गए। छात्रों ने कहा कि विकास और पर्यावरण का संरक्षण एक साथ कैसे संभव है। पेड़ कट रहे हैं तो इसे विकास कैसे कह सकते हैं? इस दौरान 11 साल के कार्तिक तिवारी और छात्रा प्रेरणा सेमवाल ने पर्यावरण पर आधारित कविताएं भी सुनाईं।

हिमालय संकल्प
कार्यक्रम में गोपेश्वर नगर के समीप स्थित प्राचीन वैतरणी कुंड के संरक्षण का संकल्प लिया गया। इसके ऊपरी हिस्से से गुजर रही सड़क का गंदा पानी और कूड़ा इसी कुंड में गिरता है। गोपेश्वर-सिरोखोमा मोटर मार्ग पर नाली नहीं होने से यह समस्या बनी हुई है। इस पर उपजिलाधिकारी (सदर) अभिनव शाह ने कहा कि एक माह के भीतर सड़क किनारे नाली का निर्माण करा दिया जाएगा। वे खुद लोक निर्माण विभाग और नगर पालिका के अधिकारियों के साथ निरीक्षण करेंगे।

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