क्यों बना हुआ है हैंगिंग और टापू ग्लेशियरों पर हिमस्खलन का खतरा? जानें यहां
हिमालयी क्षेत्र में हिमस्खलन नई घटना नहीं है। इसलिए हिमस्खलन का खतरा आगे भी जारी रह सकता है। ऐसे में, ऐसे स्थानों पर तैनात सैनिकों और पर्वतारोहियों को अलर्ट करने के साथ ही विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। यह कहना है ग्लेश्यिरोलॉजिस्ट डॉ.डीपी डोभाल का। डोभाल ने कहा कि इस साल हुई भारी बर्फबारी की वजह से हिमालय के हैंगिंग ग्लेश्यिरों के ऊपर अच्छी खासी ताजा बर्फ जमी हुई है। तीन से चार फीट तक जमी यह बर्फ वजन ज्यादा होने की वजह से फिसलकर नीचे गिर रही है। उन्होंने कहा कि कुछ दिनों पहले एवरेस्ट के निचले एरिया में एक बड़ा एवलांच आया था। उसके बाद अब तक उत्तराखंड हिमालय में चार एवलांच लगातार आ चुके हैं।
ट्रैकरों की आवाजाही हो सीमित डॉ. डोभाल का कहना है कि हिमालय के ग्लेशियर क्षेत्रों में पर्वतारोहियों और ट्रैकरों की आवाजाही को भी सीमित करने की जरूरत है। खासकर बर्फबारी और बारिश के मौसम को लेकर अलर्ट जारी किया जाना चाहिए। ऐसे समय में आवाजाही को बंद कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि एवलांच आना सामान्य घटना है लेकिन ग्लेशियर क्षेत्र में मानवीय गतिविधियों के बढ़ने से यह जोखिम भरा हो गया है।
कुछ प्रमुख घटनाएं
● छह मार्च 1979 जम्मू-कश्मीर में हिमस्खलन से 237 लोगों की मौत
● पांच मार्च 1988 जम्मू-कश्मीर में हिमस्खलन से 70 लोगों की मौत
● तीन सितंबर 1995 हिमाचल प्रदेश में हिमस्खलन से नदी में बाढ़
● दो फरवरी 2005 जम्मू-कश्मीर में हिमस्खलन से 278 की मौत
● एक फरवरी 2016 सियाचिन में हिमस्खलन से 10 सैनिकों की मौत
● सात फरवरी 2021 चमोली के रैणी में हिमस्खलन से 206 लोगों की मौत
उत्तराखंड हिमालय में 60 प्रतिशत हैंगिंग ग्लेशियर
डॉ. डोभाल ने बताया कि उत्तराखंड हिमालय में कुल 968 ग्लेशियर हैं। इसमें से 60 प्रतिशत के करीब हैंगिंग ग्लेशियर हैं या टापू ग्लेशियर हैं। ऐसे स्थानों पर हमेशा एवलांच का खतरा रहता है। स्लोव की वजह से यहां पर ताजा बर्फ टिक नहीं पाती और बार-बार गिरती रहती है।