अमरनाथ हादसे ने ताजा कर दीं केदारनाथ आपदा की खौफनाक यादें

अमरनाथ हादसे ने ताजा कर दीं केदारनाथ आपदा की खौफनाक यादें

दक्षिण कश्मीर में स्थित पवित्र अमरनाथ गुफा के पास शुक्रवार शाम को बादल फटने से कम से कम 10 लोगों की मौत हो गई। अधिकारियों ने बताया कि इस घटना में 25 से ज्यादा टेंट तथा तीन सामुदायिक रसोई घर भी नष्ट हो गए हैं। उन्होंने कहा कि भारी बारिश के बीच शाम साढ़े पांच बजे बादल फटा। सेना, पुलिस और आईटीबीपी के कर्मियों ने बचाव कार्य शुरू किया है। यह पहला मौका नहीं है जब पहाड़ों पर इस तरह की आपदा आई है। इससे पहले भी कई बार पहाड़ों पर बादल फटने से सैकड़ों लोगों की जानें गई हैं। अमरनाथ गुफा के पास बादल फटने की घटना ने एक बार फिर से केदारनाथ आपदा की खौफनाक यादें ताजा कर दीं। सबसे पहले जानते हैं कि पहाड़ों पर बादल क्यों फटते हैं।

बादल फटना क्या है? 

एक सीमित क्षेत्र में अचानक, मूसलाधार बारिश बादल फटने की स्थिति को दर्शाती है। बादल फटने के कारण सिर्फ कुछ मिनट तक मूसलाधार बारिश होती है लेकिन इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। सीधे शब्दों में कहें तो कुछ वर्ग किलोमीटर के एरिया में एक घंटे में 100 मिमी से अधिक बारिश होती है, तो इसे बादल फटना कहा जा सकता है। उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग में, 16-17 जून, 2013 की मध्यरात्रि में 479 मिमी बारिश हुई थी। उन्हें बादल फटना कहा जाता है।

ऐसा नहीं है कि पानी का एक ठोस द्रव्यमान अचानकर आकर कहीं गिर जाता हो और उसे बादल फटना कहते हों। बादल फटने की घटना अमूमन पृथ्वी से 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर घटती है। इसके कारण होने वाली वर्षा लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा की दर से होती है। कुछ ही मिनट में 2 सेंटी मीटर से अधिक वर्षा हो जाती है, जिस कारण भारी तबाही होती है।

क्यों और कैसे फटते हैं बादल?

बादल फटना एक प्राकृतिक क्रिया है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जमीन से या बादलों के नीचे से गर्म हवा ऊपर की ओर बहती है और गिरती हुई बारिश की बूंदों को अपने साथ ऊपर ले जाती है। ऐसे में लगातार हो रही बारिश नीचे न आकर ऊपर इकट्ठा होती रहती है। यानी ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह पर रुक जाते हैं।

जिसके बाद वहां मौजूद पानी की बूंदें आपस में मिल जाती हैं। बूंदों के भार से बादल का घनत्व बढ़ जाता है। फिर अचानक भारी बारिश शुरू हो जाती है। इसे प्रेग्नेंट बादल भी कहते हैं। यह एक तरह के पानी से भरे गुब्बारे की तरह होता है जिसमें छेंद करने पर सारी पानी अचानक एक साथ निकल आता है। भारत में, बादल फटना ज्यादातर पहाड़ों में होता है जहां कम मानसून के बादल ऊंचे पहाड़ों द्वारा रोक दिए जाते हैं। पानी से भरे बादल पहाड़ी इलाकों फंस जाते हैं। पहाड़ों की ऊंचाई की वजह से बादल आगे नहीं बढ़ पाते। फिर अचानक एक ही स्थान पर तेज बारिश होने लगती है।

केदारनाथ आपदा की खौफनाक यादें

जून 2013 में, उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर के पास बादल फटने से विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन हुआ था। यह 2004 की सुनामी के बाद से देश की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा थी। केदार घाटी में मारे गए लोगों के शवों की तलाश कई महीनों तक जारी रही थी। सितंबर 2013 के अंत तक, लगभग 556 शव मिले, जिनमें से 166 शव चौथे दौर के तलाशी अभियान के दौरान अत्यधिक सड़ी-गली अवस्था में पाए गए थे। बाढ़ के कारण जान-माल का भारी नुकसान हुआ था।

बहुत से लोग बाढ़ में बह गए थे। हजारों लोग बेघर हो गए। एक अनुमान है कि इस भयानक आपदा में 5000 से ज्यादा लोग मारे गए। उत्तराखंड की इस त्रादसी के अलावा जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश सहित कई पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटनाएं हुई हैं जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए। इस घटना को रोकने और पहले से पता लगाने का फिलहाल कोई सिद्ध उपाय नहीं है।

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