उत्तराखंड के जंगलों में रहती है चीन को धूल चटाने वाली घातक ‘टूटू फोर्स’, सीधे PMO को करती है रिपोर्ट
वर्ष 2020 में पूर्वी लद्दाख में पैगोंग झील के किनारे की रणनीतिक चोटी ब्लैक टॉप पर भारतीय सेना के पहुंचने में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की अहम भूमिका रही। इसे टूटू इस्टैब्लिशमेंट या टूटू फोर्स भी कहा जाता है।टूटू इस्टैब्लिशमेंट और भारतीय सेना के जज्बे ने ही ड्रैगन को ब्लैक टॉप से खदेड़ा था। आइए जानते हैं इस घातक फोर्स के बारे में:
- वर्ष 1962 में चीन से युद्ध के बाद यह टूटू फोर्स वजूद में आई थी। शुरुआत में फोर्स में 5,000 जवान थे। जिन्हें देहरादून के चकराता के जंगलों में प्रशिक्षण दिया गया। इसके लिए सरकार ने देहरादून में 22 वें प्रतिष्ठान (टूटू इस्टैब्लिशमेंट) की स्थापना की।
- शुरु में तिब्बती युवाओं को इस फोर्स में भर्ती किया जाता था, लेकिन बाद में गोरखा जवानों को भी इस फोर्स में शामिल किया गया।
- टूटू फोर्स के जवानों को स्पेशल कमांडो ट्रेनिंग और विशेष प्रकार की ट्रेनिंग दी जाती है। इन्हें ऊंची चोटियों पर के लिए विशेष ट्रेनिंग देकर तैयार किया जाता है। इस फोर्स की गतिविधियां गोपनीय रखी जाती हैं।
- यह फोर्स सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय को रिपोर्ट करती है। 1962 में भारत-चीन के बीच हुए युद्ध के समय तत्कालिक आईबी चीफ ने तत्कालिक प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू को यह फोर्स बनाने का सुझाव दिया था।
- देहरादून से करीब 100 किमी दूर बसा चकराता एक छावनी क्षेत्र है, जो सामरिक दृष्टि से काफी संवेदनशील है। यहां टूटू फोर्स का कैंप स्थित है। इसी कारण केंद्रीय गृह मंत्रालय की अनुमति के बिना यहां विदेशियों का जाना प्रतिबंधित है।
- गठन के बाद भारतीय सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल सुजन सिंह को टूटू फोर्स के पहला आईजी बनाया गया। उन्हें मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया था और ब्रिटिश भारतीय सेना में उनका अच्छा-खासा कद था।
- रिटायर्ड मेजर जनरल सुजन सिंह दूसरे विश्व युद्ध में 22वीं माउंटेन रेजिमेंट की कमान संभाल चुके थे। इसी कारण इस नई फोर्स को ’22 इस्टैब्लिशमेंट’ या ‘टूटू फोर्स’ भी कहा जाने लगा।
कई मोर्चों पर टूटू फोर्स में मनवाया लोहा
एलएसी पर चल रहे चीन से सीमा विवाद के चलते स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की तैनाती की गई है। ऑपरेशन ब्लू स्टार में भी टूटू फोर्स के कमांडो शामिल थे। कारगिल युद्ध व मुंबई में हुई आतंकी घटना में भी इन जवानों ने वीरता का परिचय दिया था। सियाचिन की चोटियों पर ‘ऑपरेशन मेघदूत’ में एसएफएफ के जवान शामिल थे।
वर्ष 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय इस फोर्स के जवानों ने स्पेशल ऑपरेशन को अंजाम दिया था। युद्ध में चटगांव के पहाड़ियों को ‘ऑपरेशन ईगल’ के तहत सुरक्षित करने में स्पेशल फ्रंटियर फोर्स की अहम भूमिका थी। इस ऑपरेशन में कई जवान बलिदानी हुए थे।