पानी का विशाल टावर है पांच लाख वर्ग किमी में फैला हिमालय
पर्यावरण और विकास से जुड़े विषय हमेशा से बहस के केंद्र में रहे हैं। पर्यावरण असंतुलन और विकास में बाधाओं के मद्देनजर दोनों ही धाराएं एक-दूसरे पर दोषारोपण करने से पीछे नहीं रही हैं।
धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अब इस सोच में बदलाव होता दिखने लगा है। इस कड़ी में आर्थिकी और पारिस्थितिकी में बेहतर समन्वय के साथ कदम बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।
हिमालय के संरक्षण में ही सबके हित समाहित
अच्छी बात ये है कि उत्तराखंड समेत हिमालयी राज्यों से निकली समन्वय, साझेदारी की इस धारा ने हिमालय के संरक्षण की दिशा में उम्मीद की नई किरण जगाई है।
साथ ही यह संदेश देने का प्रयास है कि हिमालय के संरक्षण में ही सबके हित समाहित हैं। इसे ग्लोबल वार्मिग का असर कहें अथवा नीति नियंताओं की अनदेखी, बात चाहे जो भी हो, लेकिन सच यही है कि बदली परिस्थितियों में हिमालय तमाम झंझावत से जूझ रहा है।
हिमालयी क्षेत्र में निरंतर आ रही आपदाओं के अलावा अन्य कठिनाइयों ने स्थानीय समुदाय के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं। साथ ही पर्यावरण के सामने भी दिक्कतें आई हैं। असल में पर्यावरण का संरक्षण आवश्यक है तो विकास भी जरूरी है। इन दोनों के मध्य तालमेल से तमाम कठिनाइयों का समाधान तो होगा ही, इसमें हिमालय के हित भी संरक्षित होंगे।
हिमालय से जुड़े कुछ तथ्य
- 533604 वर्ग किलोमीटर में फैला है भारतीय हिमालयी क्षेत्र। पानी का विशाल टावर है हिमालय।
- देश में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख व जम्मू-कश्मीर तक फैला है हिमालय।
- देश की 30 प्रतिशत जनसंख्या की पानी के लिए हिमालय से निकलने वाली नदियों पर है निर्भरता।
- हिमालयी क्षेत्र में पाया जाता है देश की कुल जैव विविधता का लगभग 36 प्रतिशत हिस्सा।
- वैज्ञानिकों के अनुसार विश्व की नवीनतम पर्वत श्रृंखला हिमालय की हर साल बढ़ रही पांच मिमी ऊंचाई।
- शुद्ध आक्सीजन का भंडार है हिमालय। कार्बन सोखने के साथ ही बदलते मौसम व जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में मददगार।
- आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत हिमालय जड़ी-बूटियों का विपुल भंडार होने के साथ ही जैव विविधता के मामले में बेहद धनी
- उत्तराखंड से सालाना मिल रही तीन लाख करोड़ रुपये की पर्यावरणीय सेवाएं, इनमें अकेले वनों की भागीदारी करीब एक लाख करोड़
हिमालय को सुरक्षित रखना हम सबकी जिम्मेदारी: मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से हिमालय को सुरक्षित रखना हम सब की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि हिमालय हमारे जीवन के सरोकारों से जुड़ा विषय है। हिमालय के संरक्षण के लिए इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, नदियों एवं वनों का संरक्षण जरूरी है।
हिमालय दिवस के अवसर पर अपने संदेश में मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमालय न केवल भारत, बल्कि विश्व की बहुत बड़ी आबादी को प्रभावित करता है। यह हमारा भविष्य और विरासत, दोनों है। हिमालय के सुरक्षित रहने पर ही इससे निकलने वाली सदानीरा नदियां सुरक्षित रह पाएंगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हिमालय संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मुहिम चलाए जाने के साथ ही सभी हिमालयी राज्यों को आपसी समन्वय के साथ हिमालय के पर्यावरण संरक्षण एवं संवद्र्धन के प्रति संकल्प लेने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हिमालय को उसके व्यापक परिपे्रक्ष्य में देखना होगा।
इस व्यापकता वाले विषय पर सभी बुद्धिजीवियों, विषय विशेषज्ञों, प्रकृति प्रेमियों और हिमालय की समग्रता का अध्ययन करने वालों को एक मंच पर आकर संजीदगी के साथ व्यापक चिंतन करना होगा। हिमालय का किसी राज्य व देश के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए महत्व है।
हिमालय के संरक्षण का दायित्व सभी का है। हिमालयी राज्यों को विकास के दृष्टिगत पारिस्थितिकी और आर्थिकी के समन्वय पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण उत्तरखंडवासियों के स्वभाव में है। हरेला जैसे प्रकृति से जुडऩे वाले पर्व हमारे पूर्वजों की दूरगामी सोच का परिणाम हैं।
हिमालय सबके लिए महत्वपूर्ण है और इसे बचाना सबका दायित्व। किसी भी तरह के विवादों में पडऩे के बजाय हमें विकास और पर्यावरण, दोनों ही पहलुओं पर आगे बढऩा होगा। विकास भी आवश्यक है, लेकिन आसन्न खतरों को भी हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। ऐसे में हमें पर्यावरण व विकास में इस प्रकार से सामंजस्य बैठाना होगा कि सब कुछ ठीक रहे।