उत्तराखंड बनने के बाद चंपावत में होगा पांचवें उप चुनाव का शंखनाद

उत्तराखंड बनने के बाद चंपावत में होगा पांचवें उप चुनाव का शंखनाद

उत्तराखंड बनने के बाद राज्य में इस बार पांचवा उप चुनाव चम्पावत में होगा। अब तक राज्य के चार सीएम उप चुनाव लड़ चुके हैं। सीएम पुष्कर धामी उप चुनाव लडऩे वाले पांचवें सीएम होंगे। विधायक कैलाश गहतोड़ी ने सीएम पुष्कर सिंह धामी के लिए अपनी सीट छोड़ दी है। सीएम की जीत के बाद चम्पावत विधान सभा (champawat by election) राज्य को मुख्यमंत्री देने वाली विधान सभा सीटों में शामिल हो जाएगी। सीएम के लिए चम्पावत सीट बेहद अनुकूल मानी जा रही है।

राज्य बनने के बाद अब तक चार मुख्यमंत्री उप चुनाव लड़ चुके हैं। पर किसी भी उप चुनाव में मुख्यमंत्रियों को जीतने के लिए मशक्कत नहीं करनी पड़ी। डा. रमेश चंद्र पोखरियाल निशंक, त्रिवेंद्र सिंह रावत और पुष्कर सिंह धामी विधायक रहते मुख्यमंत्री बन चुके हैं। सांसद से मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत का कार्यकाल छह माह से भी कम रहने से चुनाव की नौबत नहीं आई। वर्ष 2002 में नारायण दत्त तिवारी, वर्ष 2007 में मेजर जनरल सेवानिवृत्त बीसी खंडूरी, वर्ष 2012 में विजय बहुगुणा और वर्ष 2014 में हरीश रावत उप चुनाव लड़ चुके हैं।अब सीएम पुष्कर सिंह धामी का नाम भी उप चुनाव लडऩे वाले मुख्यमंत्रियों में जुडऩे जा रहा है। मुख्यमंत्री खटीमा से विधान सभा चुनाव हार गए थे। लेकिन भाजपा ने लगातार दूसरी बार राज्य में सरकार बनाने का रिकार्ड बनाया। राज्य में हर पांच साल बाद सत्ता बदलती रही है। लेकिन जनता ने भाजपा को लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का अवसर दिया।

मुख्यमंत्री भले ही अपना चुनाव हार गए लेकिन भाजपा की जीत में उनके द्वारा मुख्यमंत्री के रूप में छह माह के कार्यकाल में किए गए कार्यों का भी बहुत बड़ा योगदान रहा। विधायक कैलाश गहतोड़ी द्वारा मुख्यमंत्री के लिए अपनी सीट छोडऩे के बाद चम्पावत सीट पर अब उप चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। चम्पावत विधान सभा में कांग्रेस की हालत काफी पतली है, जिसे देखते हुए मुकाबला एकतरफा माना जा रहा है। लेकिन कांग्रेस मुकाबले को काफी रोचक बनाने का दावा कर रही है।जिलाध्यक्ष कांग्रेस पूरन सिंह कठायत ने बताया कि कांग्रेस उप चुनाव पूरे जोश खरोश के साथ लड़ेगी। पार्टी में गुटबाजी जैसी कोई बात नहीं है और न ही पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह कम हुआ है। हम पूरी रणनीति के तहत चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे। महंगाई, बेरोजगारी, पलायन आदि प्रमुख समस्याएं उप चुनाव के भी मुद्दे होंगे।

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