जैव संसाधनों के संरक्षण में जुटी बीएमसी को हक की प्रतीक्षा, जमा कराई जा चुकी है आठ करोड़ रुपये से ज्यादा राशि
उत्तराखंड में जैव संसाधनों के संरक्षण में जुटी आठ हजार जैव विविधता प्रबंधन समितियां (बीएमसी) अभी तक अपने हक से वंचित हैं। वह भी तब जबकि राज्य में लागू जैव विविधता अधिनियम-2002 में निहित प्रविधानों के अंतर्गत यहां के जैव संसाधनों का व्यवसायिक उपयोग कर रही कंपनियों, संस्थाओं और व्यक्तियों की ओर से आठ करोड़ रुपये से ज्यादा राशि जमा कराई जा चुकी है। उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड के अनुसार बीएमसी को यह राशि वितरित करने को फार्मूला निकाल लिया गया है। दो माह के भीतर इसका वितरण शुरू कर दिया जाएगा।
जैव विविधता के मामले में धनी उत्तराखंड में जैव विविधता अधिनियम के अंतर्गत सभी 7791 ग्राम पंचायतों, 101 नगर निकायों, 95 क्षेत्र पंचायतों व 13 जिला पंचायतों में बीएमसी गठित हो चुकी हैं। वे अपने-अपने पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर भी बना चुकी हैं, जिनमें उनके क्षेत्र में उपलब्ध जैव संसाधनों का ब्योरा है। बीएमसी का दायित्व जैव संसाधनों के संरक्षण के साथ ही इनका व्यवसायिक उपयोग करने वालों पर नजर रखना है।
ये है हक का प्रविधान
अधिनियम में प्रविधान है कि किसी भी क्षेत्र के जैव संसाधनों का व्यवसायिक उपयोग करने वाली कंपनियां, संस्थाएं और व्यक्ति अपने सालाना लाभांश में से 0.5 से लेकर तीन प्रतिशत तक की हिस्सेदारी बीएमसी को देंगी। इसके अनुपालन में विभिन्न कंपनियां, संस्थाएं, व्यक्ति नियमित रूप से यह हिस्सेदारी जैव विविधता बोर्ड में जमा करा रहे हैं। इसके बावजूद बीएमसी को उनका यह हक देने के लिए उपयुक्त फार्मूले नहीं निकल पा रहा था।
जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव आरएन झा के अनुसार अब फार्मूला तय हो गया है। इसके अंतर्गत प्रत्येक बीएमसी से प्रस्ताव लिया जाएगा। डीएफओ व वन संरक्षक से इसका परीक्षण कराया जाएगा। फिर लाभांश वितरण को गठित कमेटी बीएमसी के कार्यक्षेत्र आदि को ध्यान में रख राशि वितरण पर अंतिम मुहर लगाएगी। प्रयास ये है कि दो माह के भीतर बीएमसी को धनराशि का वितरण शुरू कर दिया जाए। इसे वे जैव संसाधनों के संरक्षण में व्यय करेंगी।