उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में पशुओं के लिए 108 केंद्रों से मिलेगा सायलेज, इस दिशा में सरकार बढ़ा रही कदम

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में पशुओं के लिए 108 केंद्रों से मिलेगा सायलेज, इस दिशा में सरकार बढ़ा रही कदम

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में पशुपालकों और विशेषकर महिलाओं के सिर से घास का बोझ हटाने की दिशा में सरकार अब तेजी से कदम बढ़ाने जा रही है। प्रयास ये है कि मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याण योजना के अंतर्गत सुदरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र के पशुपालकों को पैक्ड सायलेज व संपूर्ण मिश्रित पशु आहार (टीएमआर) उनके घर की चौखट तक उपलब्ध कराया जाए। तय योजना के अनुसार अब पर्वतीय जिलों में 108 केंद्रों के माध्यम से सायलेज का वितरण किया जाएगा।

पर्वतीय क्षेत्र में एक दौर में पशुपालन आय का सबसे सशक्त माध्यम था, लेकिन बदलते वक्त की मार इस पर भी पड़ी है। पलायन के चलते गांव खाली होने से पशुपालन कम हुआ है तो वन्यजीवों के हमले और पशु चारे की उचित व्यवस्था का अभाव भी इस राह में बाधक बना है। यद्यपि, अब धीरे-धीरे परिस्थिति बदल रही है और लोग पशुपालन की तरफ उन्मुख होने लगे हैं, लेकिन पशु चारे की व्यवस्था का बोझ महिलाओं के सिर पर ही अधिक है।

इस सबको देखते हुए पिछली सरकार के कार्यकाल में प्रारंभ की गई मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याण योजना। योजना के अंतर्गत पहले चरण में चार जिलों पौड़ी, रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा व चम्पावत में 52 केंद्रों के माध्यम से पशुओं के लिए उचित दर पर चारा यानी सायलेज उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके लिए वर्तमान में सायलेज उत्पादक एवं विपणन सहकारी संघ प्रतिदिन 30 हजार मीट्रिक टन सायलेज का उत्पादन कर रहा है।

सचिव पशुपालन डा बीवीआरसी पुरुषोत्तम के अनुसार अब मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याण योजना का दायरा बढ़ाया जा रहा है। पहाड़ के चार अन्य जिलों को इसमें शामिल कर कुल आठ जिलों में 108 केंद्रों के माध्यम से सायलेज का वितरण किया जाएगा। सायलेज की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के दृष्टिगत आगामी दिनों में 40 से 50 हजार मीट्रिक टन सायलेज उत्पादन की योजना है।

सायलेज उत्पादन एवं विपणन सहकारी संघ लिमिटेड हरिद्वार व देहरादून जिलों में नौ बहुद्देश्यीय सहकारी समितियों के माध्यम से पांच सौ एकड़ में क्लस्टर आधारित खेती के आधार पर मक्का का उत्पादन करा रहा है। किसानों को अपनी भूमि पर मक्का उत्पादन के लिए जुताई, सिंचाई, बीज, खाद समेत सभी प्रकार के व्यय समितियां वहन करती हैं। किसानों से प्राप्त मक्का का उपयोग सायलेज बनाने में किया जा रहा है।

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